नगालैंड शांति वार्ता को लेकर क्यों परेशान है मणिपुर?


इंफाल
नागा विद्रोह को सुलझाने की केंद्र की कोशिशों से समाधान से ज्यादा परेशानियां पैदा हो सकती हैं। समझौते पर दस्तखत करने की आखिरी तारीख 31 अक्टूबर को निकल चुकी है लेकिन फिर भी नागा शांति समझौते के लिए बहुत से चुनौतियां सामने हैं। दरअसल, केंद्र और नागा बातचीत में इस बात की संभावना है कि मणिपुर के कुछ हिस्से ग्रेटर नागालिम क्षेत्र में चले जाएंगे। इन क्षेत्रों में ईसाई नागा आबादी से उलट हिंदू समुदाय बहुलता में है। नगालैंड के पड़ोसियों, खासकर मणिपुर के लिए सबसे बड़ी चिंता है 13% नागा आबादी जो नगालैंड की सीमा के पहाड़ी इलाकों में बसी है।


बनी रहे अखंडता
मणपिर की सिविल सोसायटियां इस बात की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन कर रही हैं कि राज्य की क्षेत्रीय अखंडता बनी रहेगी। सिर्फ मणिपुर ही नहीं, अरुणाचल प्रदेश में भी बड़ी संख्या में नागा आबादी है। यहां भी ऑल अरुणाचल प्रदेश स्टूडेंट्स यूनियन भी यह मांग कर रहे हैं कि राज्य के हितों पर नागा शांति समझौते का असर न पड़े। असम में भी नागा आबादी काफी ज्यादा है लेकिन वहां शांति समझौते को लेकर प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली है।


तनावपूर्ण संबंध
उत्तर पूर्व में आदिवासी पहचान बहुत ताकतवर होती है। मणिपुर में मेइतेइ और नागा लोगों के अलावा कूकी समुदाय तीसरा सबसे बड़ा आदिवासी समाज है। वे पहाड़ी इलाकों पर दावा करते हैं। उन्हें भी ऐसा लगता है कि नागा समझौते से उनके अधिकार छिन जाएंगे। नागा और कूकी समुदायों के बीच में संबंध हमेशा से तनावपूर्ण रहे हैं। हालांकि, 1993 में नागा समुदाय के हाथों के कूकी समुदाय के 115 लोगों की हत्या किए जाने के बाद से यह तनाव और बढ़ गया।

अफवाह फैली तो तैनात करनी पड़ी फोर्स
केंद्र ने नगालैंड के पड़ोसी राज्यों को आश्वासन दिया है कि नागा आबादी के लिए उन्हें तोड़ा नहीं जाएगा। नैशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालिम के नेतृत्व में शांति समझौता बनाने में उनसे बातचीत भी की गई। हालांकि, मणिपुर का दावा है कि शांति समझौते की हर बातचीत में उनको शामिल नहीं किया गया जिससे उन तक अफवाह पहुंची कि नागा शांति समझौते पर दस्तखत कर दिए गए हैं। यह खबर फैलते ही इंफाल और मणिपुर के दूसरे राज्यों में विरोध प्रदर्शन होने लगे और पैरामिलिटरी फोर्स की 15 कंपनियों को राज्य में तैनात करना पड़ा।