नई दिल्ली
अगर आप फोन, इंटरनेट समेत किसी भी प्रकार के डिजिटल मीडियम का इस्तेमाल करते हैं तो सचेत हो जाएं। अब आपका गलत डिजिटल लाइफ बिहेवियर आपको मुश्किलों में डाल सकता है। दरअसल, सरकार देश की संप्रभुता और अखंडता, राज्य की सुरक्षा, कानून व्यवस्था के सुचारू संचालन और विदेशों के साथ मित्रवत संबंध सुनिश्चित करने के लिए आपके पर्सनल डेटा में भी सेंध लगाने से नहीं चूकेगी। पर्सनल डेटा प्रॉटेक्शन बिल में जांच एजेंसियों को यह अधिकार देने का प्रावधान किया गया है। इस प्रावधान से स्पष्ट होता है कि सरकार ने जस्टिस बीएन श्रीकृष्ण कमिटी द्वारा तैयार मसौदा विधेयक को तवज्जो नहीं दिया है।
पर्सनल डेटा प्रॉटेक्शन बिल, 2019 इसी हफ्ते लोकसभा में पेश किया जा सकता है। सरकार इस बिल के जरिए भारतीय नागरिकों के डिजिटल इन्फर्मेशन के प्रबंधन और कानूनी संरक्षण के लिए देश का पहला कानून लाने जा रही है। विधेयक को तीन अलग-अलग समूहों में बांट गया है।
पर्सनल डेटा प्रॉटेक्शन बिल डेटा को तीन बड़ी श्रेणियों में वर्गीकृत करता है- पर्सनल, सेंसिटिव पर्सनल और क्रिटिकल पर्सनल। सरकार बिल के जरिए किसी खास जरूरत पर नागरिकों के तीनों श्रेणियों के पर्सनल डेटा तक बिना किसी रोकटोक के अपनी पहुंच बनाने का रास्ता साफ कर रही है। विधेयक के प्रावधान के मुताबिक, सरकार किसी भी इंटरनेट प्रवाइडर या सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म (मसलन गूगल, ट्विटर, फेसबुक, वॉट्सऐप, ऐमजॉन, फ्लिपकार्ट, ऐपल) को किसी भी केंद्रीय जांच एजेंसी से किसी का पर्सनल डेटा साझा करने का आदेश दे सकती है। हां, किसी प्राइवेट सिटिजन से पर्सनल डेटा की मांग नहीं की जा सकती।
जस्टिस श्रीकृष्ण समिति ने पिछले वर्ष सरकार को मसौदा कानून के ढांचे में अपनी सिफारिश सौंपी थी। समिति ने ड्राफ्ट तैयार करने के लिए संबंधित पक्षों के साथ गहन विचार-विमर्श किया था। वह सरकार को ऐसी बेरोकटोक पहुंच देने के पक्ष में नहीं थी। हालांकि, ड्राफ्ट बिल में कहा गया है कि संसद से निर्मित कानून में मिले अधिकार और तय कानूनी प्रक्रिया के तहत ही देश की सुरक्षा के हित में पर्सनल डेटा की प्रॉसेसिंग की अनुमति दी जा सकती है। विधेयक में स्पष्ट कहा गया है कि राष्ट्र हित में ही पर्सनल डेटा की प्रोसेसिंग की अनुमति दी जा सकती है, वरना नहीं। मोजिला कॉर्पोरेशन के अडवाइजर उद्भव तिवारी ने कहा कि विधेयक का यह प्रावधान केंद्रीय एजेंसियों को बेलगाम ताकत देता है।