नई दिल्ली
मांग में ऐतिहासिक गिरावट के बाद तेल की कीमत पहली बार नेगेटिव हो चुकी है। अमेरिका में सोमवार को वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट में मई महीने के फ्यूचर ट्रेडिंग में तेल की कीमत करीब -40 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई। इसका मतलब है कि प्रोड्यूसर अब तेल को ले जाने के लिए खरीदारों को पैसे देंगे। आइए पॉइंट्स में समझते हैं कि क्यों हुआ ऐसा और भारत पर इसका क्या असर पड़ेगा।
1- क्यों नेगेटिव में हुआ दाम?
2019 के आखिर में चीन में कोरोना वायरस फैलने के बाद से ही ग्लोबल मार्केट में तेल की कीमत लगातार गिर रही है। बाद में वायरस चीन से बाहर फैलते हुए पूरी दुनिया को चपेट में ले लिया। जगह-जगह लॉकडाउन है, ज्यादातर जगहों पर ट्रांसपोर्ट तकरीबन बंद है इस वजह से तेल की डिमांड बहुत ही ज्यादा घट गई है। तेल की डिमांड पिछले 25 सालों में सबसे कम स्तर पर है। दूसरी तरफ ऑइल प्रोड्यूसर तेल कुंओं से उत्पादन जारी रखे हुए हैं। इस वजह से तेल की ओवर सप्लाई हुई और मांग व आपूर्ति का पूरा संतुलन ही गड़बड़ा गया।
2- 'नेगेटिव प्राइस' का क्या है मतलब?
आसान शब्दों में कहें तो इसका मतलब है कि ऑइल प्रोड्यूसर के पास स्टोरेज के लिए जगह नहीं बची है लिहाजा वे तेल ले जाने पर उल्टे खरीदार को पैसे देंगे। सोमवार को अमेरिका में जो स्थिति थी उसके मुताबिक अगर कोई खरीदार तेल लेना चाहता है तो ऑइल प्रोड्यूसर उल्टे ऐसे खरीदारों को प्रति बैरल करीब 40 डॉलर चुकाएंगे। इसका असर यह होगा कि ऑइल प्रोड्यूसर अब प्रोडक्शन का काम रोक सकते हैं क्योंकि कोई भी तेल कंपनी अपने कच्चे तेल को घाटे में तो बिल्कुल नहीं बेचना चाहेगी। लिहाजा मुमकिन है कि ऑइल प्रोड्यूसर तब तक अपने कुंओं को बंद कर दें जब तक मार्केट रिकवर नहीं हो जाता।
3- यूएस में नेगेटिव प्राइस का भारत पर क्या असर?
तेल के ओवरफ्लो की स्थिति अमेरिका में है। बाकी देशों में डिमांड जरूर कम है लेकिन ओवरफ्लो की स्थिति नहीं है। अमेरिका में प्रोड्यूसर हर दिन 1 करोड़ बैरल तेल का उत्पादन करते हैं। ऑइल स्टोरेज टैंक भर चुके हैं इसलिए कंपनियां सरप्लस तेल की किसी भी तरह बेचना चाहती हैं। बाकी देशों में तेल की कीमत कम हुई है लेकिन शून्य नहीं। भारत की बात करें तो WTI (वेस्ट टेक्सस इंटरमीडिएट) कीमतों से यहां सीधा कोई असर नहीं पड़ेगा। भारत की निर्भरता ब्रेंट क्रूड ऑइल पर है जो इंटरनैशनल बेंचमार्क ऑइल प्राइस है। ब्रेंट क्रूड अभी भी 25 डॉलर प्रति बैरल के स्तर के आस-पास है। इस साल जनवरी से लेकर ब्रेंट क्रूड की कीमत में करीब 2 तिहाई से ज्यादा गिरावट आ चुकी है और यह 18 वर्षों में सबसे कम कीमत है। जाहिर है, भारत को भी तेल सस्ते में मिल रहे हैं लेकिन शून्य के आस-पास वाली स्थिति नहीं है।
4- पेट्रोल, डीजल की कीमतों पर क्या होगा असर?
तेल की कीमतों के रसातल में जाने से इस साल पेट्रोल की कीमतों में तेजी से गिरावट होने वाली है। लेकिन पेट्रोल पंप पर अदा की जाने वाली कीमत भी ऑइल मार्केट की तरह ही होगी, इसे तो भूल ही जाइए। इसकी वजह है रिफाइनरी से पेट्रोल पंप तक के तेल के सफर के दौरान टैक्स, कमीशन और तेल कंपनियों का मुनाफा। भारत के संदर्भ में इसे देखते हैं। ऑइल प्रोड्यूसर से कच्चा तेल खरीदा गया। अब इससे रिफाइनरी पेट्रोल, डीजल और दूसरे पेट्रोलियम प्रोडक्ट निकालती हैं। यहां तेल कंपनियां अपना मुनाफा वसूलने के बाद तेल को पेट्रोल पंप तक पहुंचाती हैं। अब पेट्रल पंप मालिक प्रति लीटर तयशुदा कमीशन भी लेता है। रिटेल प्राइस में एक्साइज ड्यूटी और वैट और सेस भी जुड़ता है जिससे उपभोक्ता को अपनी काफी जेब ढीली करनी पड़ती है।
5- भारत में पेट्रोल पंप तक पहुंचते-पहुंचते कैसे इतनी बढ़ जाती है कीमत?
इसे ऐसे समझें। रिफाइन करने के बाद तेल कंपनियां चार्ज लेकर तेल को आगे बढ़ाती हैं। पिछले महीने तक भारत में तेल कंपनिया पेट्रोल पर प्रति लीटर करीब 14 रुपये और डीजल पर प्रति लीटर करीब 17 रुपये चार्ज ले रही थीं। अब इस पर एक्साइज ड्यूटी और रोड सेस लगता है। पिछले महीने पेट्रोल पर यह प्रति लीटर करीब 20 रुपये और डीजल पर करीब 16 रुपये था। इसके बाद नंबर आता है पेट्रोल पंप मालिक के कमीशन का। वे पेट्रोल पर प्रति लीटर 3.55 रुपये और डीजल पर 2.49 रुपये कमीशन लेती हैं। इन सबके ऊपर फिर वैट लगता है। दिल्ली में पेट्रोल-डीजल पर 27 प्रतिशत वैट है। इस तरह क्रूड ऑइल से रिटेल में आते-आते तेल की कीमत करीब 3 से 4 गुना बढ़ जाती हैं।