नई दिल्ली
कोरोना वायरस संकट से जूझ रहे भारत के सामने पहले टेस्टिंग किट की कमी का संकट था। लेकिन अब लाखों की संख्या में रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट्स आ गई हैं। लेकिन अभी एक बड़ी परेशानी सामने है। यह दिक्कत एंटीबॉडी किट्स से रिजल्ट को लेकर है जिनपर संशय बना रहता है। दरअसल, दुनियाभर से ऐसी रिपोर्ट आई हैं जिसने एंटीबॉडी किट्स पर विश्वसनीयता का संकट खड़ा कर दिया है।
भारत ने इससे निपटने की तैयारी शुरू कर दी है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) अब प्लान और प्रोटोकॉल बनाने में जुट गया है। इसमें गाइडलाइंस तैयार की जा रहीं कि राज्य इन किट्स को कैसे इस्तेमाल कर सकेगा।
क्या है एंटी बॉडी टेस्ट
रैपिड एंटीबॉडी टेस्ट से ये कंफर्म नहीं होता कि किसी शख्स में कोरोना वायरस है या नहीं। बस ये पता चलता है कि उसमें कोरोना वायरस से लड़ने वाली एंटीबॉडी बन रही हैं या नहीं। यानी ये कोरोना मरीजों की संभावित पहचान करने में मददगार है। इस टेस्ट से पता चलता है कि क्या शरीर में कोरोना वायरस आया था या नहीं। एंटीबॉडी पॉजिटिव आती है तो पीसीआर करवाने की सलाह दी जाती है। अगर वह भी पॉजेटिव आई तो यानी कोरोना है। अगर नहीं तो यानी पुराना इंफेक्शन हो सकता है। ऐसे में अलग रहने की सलाह दी जाती है। अगर दोबारा रिपोर्ट नेगेटिव आई तो शख्स घर जा सकता है।
एक सीनियर अधिकारी ने बताया कि एंटीबॉडी किट्स को केवल हॉटस्पॉट या भीड़ वाली जगहों पर ही इस्तेमाल किया जाएगा। उन्होंने कहा, 'यह बिल्कुल अलग टेस्ट है और इसके लिए अलग गाइडलाइंस बनानी जरूरी हैं।' दरअसल, दुनियाभर से ऐसी रिपोर्ट आई हैं कि एंटीबॉडी टेस्ट में इंफेक्शन नहीं पाया गया और गलत नेगेटिव रिपोर्ट आ गई। वरिष्ठ महामारी विशेषज्ञ ने नाम न देने की शर्त पर कहा, 'एंटीबॉडी टेस्ट किट गलत नेगेटिव और पॉजिटिव रिपोर्ट दे सकती हैं। इसलिए इस बात का विशेष ख्याल रखना जरूरी है।'
सिर्फ निगरानी में इस्तेमाल होगा: ICMR
फिलहाल देश में चीन से 5 लाख से ज्यादा एंटीबॉडी टेस्ट किट आ चुकी हैं। इनका इस्तेमाल निगरानी और महामारी विज्ञान अनुसंधान में किया जाएगा। आईसीआमआर के हेड साइंटिस्ट डॉ आर गंगाखेडकर ने बताया था कि अगर किसी शख्स के शुरुआती 10 दिन या दो हफ्तों में एंटीबॉडी टेस्ट हुआ तो सिर्फ 80 प्रतिशत चांस हैं कि उसमें एंटीबॉडी मिलें। ऐसे में किट का इस्तेमाल बीमारी पता करने में नहीं बल्कि नजर रखने के लिए किया जाएगा।