नई दिल्ली
दुनियाभर में कोरोना वायरस के 22 लाख से ज्यादा मामले सामने आए हैं। डेढ़ लाख से ज्यादा लोग इस महामारी के चलते काल के गाल में समा चुके हैं। भारत में जो संस्थान अभी कोरोना वायरस से लड़ाई में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं, चाहे वह ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) हो या फिर नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरलॉजी, उनकी स्थापना भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के विजन के चलते हुए। कोरोना के इस काल में नेहरू का विज्ञान को लेकर विजन याद करने लायक है।
आजादी के वक्त महामारियों से जूझ रहा था भारत
जिस वक्त आजादी मिली, भारत चेचक, पोलिया, मलेरिया इत्यादि से जूझ रहा था। देश की करीब आधी आबादी ऐसे इलाकों में रहती थी जहां मलेरिया का खतरा बहुत ज्यादा था। नेहरू सरकार ने इन्हें और इनके जैसी कई घातक बीमारियों को खत्म करने के लिए क्रांतिकारी कदम उठाए। 1953 में मलेरिया के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान शुरू किया। एक दशक के भीतर इन्फेक्शन के मामले इतने कम हो गए कि केंद्र ने लोकल अथॉरिटीज को यह काम सौंप दिया। 1951 में चेचक की वजह से 1,48,000 लोगों की मौत हुई। 10 साल बाद यह आंकड़ा 12,300 मौतों तक लाया जा चुका था। हर पंचवर्षीय योजना में इन महामारियों से लड़ने को संसाधन मुहैया कराए गए।
पब्लिक हेल्थ सिस्टम को किया मजबूत
1950 के दशक में प्लेग को पूरी तरह खत्म कर दिया गया। कुष्ठ, फाइलेरिया, डिप्थीरिया, टायफायड, काली खांसी, निमोनिया, मेनिनजाइटिस, रेबीज जैसी बीमारियों को दूर करने के लिए पब्लिक हेल्थ केयर सिस्टम को मजबूत किया गया। सरकार ने टीकाकरण प्रोग्राम चलाकर जनता को इम्यून किया। इसके लिए ना सिर्फ भारी मात्रा में संसाधनों की जरूरत थी, बल्कि मेडिकल एक्सपर्ट्स की भी। 1946 में देश में 15 मेडिकल कॉलेज हुआ करते थे, 1965 तक यह संख्या बढ़कर 81 पहुंच गई।
Covid-19 से लड़ाई में कैसे काम आ रहीं नेहरू की नीतियां?
दुनिया जब कोरोना वायरस जैसी घातक महामारी से लड़ रही है, तब नेहरू की नीतियां साफ दिखती हैं। जिन देशों ने सस्ती स्वास्थ्य सुविधाओं का सिस्टम तैयार किया जैसे चीन, ताइवान, सिंगापुर, क्यूबा और वियतनाम। वे देश बाकी देशों के मुकाबले बेहतर ढंग से कोरोना वायरस का सामना कर पा रहे हैं। अपने यहां केरल राज्य का उदाहरण देख सकते हैं। वह स्वास्थ्य सुविधाओं के निजीकरण से दूर रहा और पब्लिक हेल्थ सुविधाओं का विस्तार करता गया। दुनिया के कई देशों के मुकाबले केरल ने Covid-19 का डटकर सामना किया है।
नेहरू के विजन ने देश को दिए IITs
नेहरू का साइंटिफिक ब्लूप्रिंट दो बिंदुओं पर आधारित था। पहला, वह चाहते थे कि भारत में वर्ल्ड क्लास इंस्टीट्यूशंस तैयार हों। अमेरिका जाकर उन्होंने समझा कि कैसे वहां की यूनिवर्सिटीज टेक्नोलॉजी और साइंस के क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं। साल 1949 में मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) की उनकी यात्रा ने भारत को 5 ऐसे संस्थान दिए जो आज देश का गौरव हैं। 1950 में खड़गपुर में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (IIT) की नींव रखी गई। 1958 में बॉम्बे, 1959 में मद्रास और कानपुर तथा 1961 में दिल्ली में IIT की स्थापना हुई। दूसरा, वह उस समय के महान वैज्ञानिकों को राष्ट्र-निर्माण के काम में लगाना चाहते थे। उस दौर में रिसर्च से जुड़े बड़े संस्थानों को चलाने का जिम्मा विक्रम साराभाई, सर सीवी रमन, होमी जहांगीर भाभा, सतीश धवन, एसएस भटनागर जैसे वैज्ञानिकों पर था।
विज्ञान के दोनों पहलुओं से वाकिफ थे नेहरू
नेहरू एक साइंटिफिक सोसायटी बनाना चाहते थे। नेहरू के मुताबिक, विज्ञान मानव की वो जीत थी जो मानवता को बीमारी के बंधन से मुक्ति दिला सकती थी। 1934 में नेहरू ने अपनी बेटी को लिखा था, "सैनिटेशन और स्वास्थ्य तथा कुछ बीमारियों पर विजय विज्ञान पर निर्भर करती है। "नेहरू ने विज्ञान के दोनों पहलुओं को देखा। वो एक तरफ उसकी अपार संभावनाएं देख रहे थे, दूसरी तरफ एटम बम जैसे विनाशकारी परिणामों से भी वाकिफ थे। नेहरू विचारधाराओं की दीवारों में नहीं उलझे और कोल्ड वॉर से दूर ही रहे। नेहरू ने साइंटिफिक टेम्पर को बूस्ट करने के लिए कई बेहतरीन संस्थानों का खाका खींचा। 1954 में डिपार्टमेंट ऑफ एटॉमिक एनर्जी बना, उसी साल भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर की स्थापना हुई। 1962 में इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन की नींव पड़ी।