निर्देशक बासु चटर्जी और अभिनेता अमोल पालेकर की जोड़ी हिंदी सिनेमा की बेहद सफल जोड़ियों में से एक रही है। दोनों ने साथ में अपने पराए, रजनीगंधा, चितचोर, छोटी सी बात जैसी कई यादगार फिल्में की हैं। बासु दा से जुड़ी यादें साझा करते हुए अमोल पालेकर कहते हैं, 'मेरा तो बासु दा के साथ बहुत लंबा सफर रहा है। हमने 8 फिल्में साथ में की है। मैं बासु दा का फेवरिट कहा जाता था, इसलिए बहुत सारी यादें हैं। बासु दा अपनी फिल्मों की ही तरह थे, सीधे, सरल और एक अलग सेंस ऑफ ह्यूमर। वे मितभाषी थे, बहुत कम बातें करते थे, लेकिन हमेशा पते की बात करते थे।'
फिल्मों की पटकथा और संवाद खुद लिखते
अमोल पालेकर ने आगे कहा, 'बासु दा का एक बहुत बड़ा पहलू यह था कि वह इकलौते ऐसे बंगाली निर्देशक थे, जिनका हिंदी भाषा पर बहुत प्रभुत्व था। उनकी हिंदी भाषा की जानकारी बहुत बढ़िया थी, शायद ऐसा इसलिए, क्योंकि वे इलाहाबाद में बड़े हुए थे। अपनी फिल्मों की पटकथा और संवाद भी वह खुद लिखते थे और छोटी-छोटी बारीकियां अपने किरदारों में बड़ी खूबसूरती से लाते थे। उनका कोई किरदार लार्जर दैन लाइफ नहीं होता था। वह आम आदमी होता थे और उनकी छोटी-छोटी परेशानियां, जिसे वह एक खास किस्म के ह्यूमर में कहते थे। उन्होंने मुझे हर फिल्म में अलग-अलग किरदार दिए। इसके अलावा, बासु दा ने मेरी झोली में एक और बहुत बड़ी नेमत डाली, वह है बहुत ही प्यारे-प्यारे गाने, जिसके लिए मैं उनका हमेशा बहुत अहसानमंद रहूंगा।'
पहले फिल्मी ऑफर का रोचक किस्सा
अमोल पालेकर बासु दा के पहले फिल्मी ऑफर का एक रोचक किस्सा भी सुनाते हैं। बकौल अमोल पालेकर, 'मजे की बात यह है कि बासु दा ने पहली बार मुझे फिल्म 'पिया का घर' का ऑफर दिया था, जिसे मैंने ठुकरा दिया था। उसकी वजह यह थी कि उन्होंने मुझसे कहा कि जाकर प्रड्यूसर से मिल लो और बाकी बातें कर लो, तो मैंने कहा कि आप मुझे अपनी फिल्म में लेना चाहते हैं, तो आप प्रड्यूसर से मुझे सम्मान के साथ मिलवाइए। इसलिए, बात खत्म हो गई।
अब भी मानने को तैयार
नहीं
अमोल पालेकर ने आगे बताया, 'इसके बावजूद, वह रजनीगंधा का ऑफर लेकर मेरे पास आए। मैंने उनसे पूछा भी कि मेरे मना करने पर आपको गुस्सा नहीं आया था, तो उन्होंने कहा कि बिल्कुल आया था कि इस बंदे ने कुछ किया नहीं है, फिर भी इतनी अकड़ है, लेकिन मैंने जब गहराई से सोचा तो तुम्हारी बात सही लगी। इसलिए, जब वे फिल्म रजनीगंधा का ऑफर लेकर आए, तो प्रड्यूसर सुरेश जिंदल को साथ लेकर आए थे। मैं उनके संपर्क में हमेशा रहा। मुझे पता था कि उनका स्वास्थ्य मुरझा रहा है, इसलिए उनके जाने की खबर से सदमा नहीं लगा, पर मन अब भी मानने को तैयार नहीं है कि वे नहीं रहे।'